एक प्रहर के गात नदन ने कहा-मुझ भ्रम हो रहा है कि कोई
यहा पास ही विपन है। राधा। अभी रात अधिक नहीं हुई है। मैं
एक बार नाव लेकर जाऊ ?
राधा ने का-मैं भी चल ? नदन ने कहा-गृहिणी का काम करो राधा ! कर्तय कठोर होता है भाव प्रधान नहीं।
नदन एक मांझी को लेकर चला गया और राधा दीपक जला कर मडेरे पर बैठी थी। उसकी दासी और दास पीड़ितों की सेवा म लगेथे। बादल खुल गये थे । असंख्य नक्षत्र झलमला कर निक्ल पाये मेघों के बन्दीष्ट से जसे छुटी मिली हो ! चद्रमा भी धीरे धीरे उस जस्त प्रदेश को भयभीत होकर देख रहा था।
एक घटे म नदन का शब्द सुनाई पड़ा-सीढी।
राधा दीपक दिखला रही थी और सीढी के सहार न दन ऊपर एक भारी बोझ लेकर चढ रहा था ।
छत पर आकर उसने कहा-एक घस्त्र दो राधा राधा ने एक उत्तरीय दिया । वह मुमुष व्यक्ति नग्न या । उसे ढक कर नदन ने थोड़ा सक दिया गर्मी भीतर पहुँचते ही वह हिलने डोलने लगा । नीचे से माझी ने काजल बड़े वेग से हट रहा है नाव ढीली न करूँँगा तो लटक जायगी।
नन्दन ने कहा-तुम्हारे लिए भोजन लटकाता हूँ ले लो। काल रात्रि यीत गई । नन्दन ने प्रभात म पाखें खोलकर देखा कि सब सो रहे हैं और राधा उसके पास बैठी सिर सहला रही है ।
इतने म पीछे से लाया हुश्रा मनुष्य उठा। अपने को अपरिचित स्थान में देख कर वह चिल्ला उठा-मुझे वस्त्र किसने पहनाया मेरा व्रत किसने भंग किया।