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आँँधी

स्नेह से चूम कर उसे बेचने के लिए अनुचर को दे दिया । पण्य मे पहुँचते ही दीपाधार बड़े-बड़े रन पणिका की दृष्टि का एक कुतूहल बन गया । उसके चूडामणि का दिव्य आलोक सभी की आँखों में चका चौंध उत्पन्न कर देता था । मूय की बोली बढने लगी। कलश भी पहुँचा । उसने पूछा-यह किसका है ? अनुचर ने उत्तर दिया मेरी स्वामिनी सौभा यवती श्रीमती राधा देवी का।

लोभी कलश ने डाँट कर कहा-मेरे घर की वस्तु इस तरह चुरा कर तुम लोग बेचने फिर पाश्रोगे तो बदी गृह में पड़ोगे। भागो।

अमूल्य दीपाधार से वंचित सब लोग लौट गये। कलश उसे अपने घर उठवा ले गया।

राधा ने सब सुना-वह कुछ न बोली।

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गंगा और शोण में एक साथ ही बाढ श्राई। गाँव के गाव बहने लगे । भीषण हाहाकार मचा । कहाँ ग्रामीणों की असहाय दशा और कहा जल की उद्दण्ड बाढ क चे झोपड़े उस महाजल याल की फैक से तितर बितर होने लगे । वृक्षों पर जिसे श्राश्रय मिला यही बच सका। नन्दन के हृदय ने तीसरा धक्का खाया । नदन का सस्साहस उमाहित हुआ [वह अपनी पूरी शक्ति से नावों की सेना बना कर जलप्लावन में डट गया और कलश अपने सात खण्ड के प्रासाद में बैठा यह दृश्य देखता रहा।

रात नावों पर बीतती है और बासों के छोटे छोटे बेड़े पर दिन । नन्दन के लिने घूप वर्षां शीत कुछ नहीं। अपनी धुन म वह लगा हुआ है । बाढ़ पीड़ितों का झुण्ड सेठ के प्रासाद मे हर नावों से उतरने लगा। कलश क्रोध के मारे बिलबिला उठा। उसने आज्ञा दी कि बात पीड़ित यदि स्वयं नन्दन भी हो तो वह मासाद में न आने पावे । घटा