यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७८
आँँधी
मैं रोक सकती हूँ । वह मूर्ख नंदन ! कितना असङ्गत चनाव है। राधा मुझे दया पाती है।

किसी अन्य प्राकार से गुरुजनों की इच्छा को टाल देना यह मेरी धारणा के प्रतिकूल है महादेवी । नन्दन की मूर्खता सरलता का सत्य रूप है । मुझे वह श्ररुचिकर नहीं। मैं उस निर्मल हृदय की देखरेख कर सकें तो यह मेरे मनोरजन का ही विषय होगा।

मगध की महादेवी ने हसी से कुमारी के इस साहस का अभिनन्दन करते हुए कहा । तब तेरी जसी इच्छा तू स्वय भोगेगी।

माधवी कुंज से वह विरक होकर उठ गई । उहे राधा पर कया के समान ही स्नेह था।

दिन स्थिर हो चुका था। स्वय मगध नरेश की उपस्थिति में महा श्रेष्ठि धनञ्जय की कन्या का याह कलश के पुत्र से हो गया अद्भुत वह समारोह था । रतों के श्राभूषण तथा स्वर्ण पात्रों के अतिरिक मगध सम्राट ने राधा की प्रिय वस्तु अमू य मणि निर्मित दीपाधार भी दहेज में दे दिया । उस उसव की बड़ाई पान भोजन श्रामोद प्रमोद का विभवशाली चारु चयन कुसुमपुर के नागरिकों को बहुत दिन तक गफ करने का एक प्रधान उपकरण था।

राषा कलश की पुत्र वधू हुई।

x
x
x

राधा के नवीन उपवन के सौध मदिर म अगुरु कस्तूरी और केशर की चहल-पहल पुष्ष मालाओं का दोनों सध्या म नवीन आयी जन और दीपावली में वीणा वंशी और मदंग की स्निग्ध गम्भीर ध्वनि बिखरती रहती । नन्दन अपने सुकोमल श्रासन पर लेटा हुआ राधा का अनिन्ध सौन्दर्य एकटक चुप चाप देखा करता । उस सुसखित प्रकोष्ठ में मणि निर्मित दीपाधार की यत्र-मयी नर्तकी अपने नपुरों की झंकार