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दासी
भाई!-इरावती आगे कुछ न क सकी उसका गला भर आया था। उसने तिलक क पैर पकड़ लिये।
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बलराज जाटों का सर्दार है इरावती रानी। चनाव का वह प्रात इरावती की करुणा से हरा भरा हो रहा है कि तु फीरोजा की प्रसन्नता की वहीं समाधि बन गई-और वहीं वह झाड़ देती फूल चढाती और दीप जलाती रही। उस समाधि की वह आजीवन दासी बनी रही।