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आँँधी

धर्म युद्ध है। गुलाम बनने का भय नहीं।-बलराज अभी यह कही रहा था कि वह चौंक कर पीछे देखता हुआ बोल उठा-अच्छा वे लोग आ ही गये । समय नहीं है !-- बलराज दूसरे ही क्षण में अपने घोड़े की पीठ पर था मादक अहमद की सेना सामने आ गई। बलराज को देखते ही उसने चिल्ला कर कहा- बलराज ! यह तुम्ही हो अहमद!

तो हम लोग दोस्त भी बन सकते हैं । अभी समय है-कहते कहते सहसा उसकी दृष्टि फीरोजा और इरावती पर पड़ी। उसने समय व्यवस्था भूलकर तुरन्त ललकारा-पकड़ लो इन औरतों को?-उसी समय बलराज का भाला हिल उठा । युद्ध का प्रारम्भ था।

जाटों के विजय क साथ युद्ध का अंत होने ही वाला था कि एक नया परिवर्तन हुआ । दूसरी ओर से तुर्क सेना जाटों की पीठ पर थी घायल बलराज का भीषण भाला अहमद की छाती में पार हो रहा था। निराश जाटों की रण प्रतिज्ञा अपनी पूर्ति करा रही थी। मरते हुए अहमद ने देखा कि गजनी की सेना के साथ तिलक सामने खड़े थे। सब के अस्त्र तो रुक गये परंतु अहमद के प्राण न रुके । फीरोजा उसके शव पर झुकी हुई रो रही थी और इरावती मूर्छित हो रहे बलराज का सिर अपने गोद में लिये थी। तिलक ने विस्मित होकर यह दृश्य देखा।

बलराज ने जल का संकेत किया । इरावती के हाथों में तिलक ने जल का पात्र दिया । जल पीते ही बलराज ने आखें खोलकर कहा- इरावती अब मैं न मरूंगा?

तिलक ने आश्चर्य से पूछा-इरावती!

फीरोजा ने रोते हुए कहा-हा राजा साहब इरावती ।

मेरी दुखिया इरावती ? मुझे क्षमा कर मैं तुमे भूल गया था।- तिलक ने विनीत शब्दों में कहा।