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दासी
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खो बैठा । एक ओर उसके पास मसऊद के रोष के समाचार पाते थे दूसरी ओर वह जाटों की हलचल से खजाना भी नहीं भेज सकता था। वह झुझला गया। दिखावे में तो अहमद ने जाटों को एक बार ही नष्ट करने का निश्चय कर लिया और अपनी दृढ़ सेना के साथ वह जाटों को घेरे में डालते हुए बढ़ने लगा कि तु उसके हृदय में एक दूसरी ही बात थी। उसे मालूम हो गया था कि गजनी की सेना तिलक के साथ आ रही है। उसकी कल्पना का साम्राज्य यह छिन भिन्न कर देने के लिए। उसने अंतिम प्रयत्न करने का निश्चय किया | अंतरंग साथियों की स्मृति हुई कि यदि विद्रोही जाटों को इस समय मिला लिया जाय तो गजनी से पंजाब आज ही अलग हो सकता है। इस चढ़ाई में दोनों मतलब थे।

घने जंगल का प्रारम्भ था । वृक्षों के हरे अंचल की छाया में थकी हुई दो युवतियां उनकी जड़ों पर सिर धरे हुए लेटी थीं। पथरीले टीलों पर पड़ती हुई घोड़ों की टापा के ने उन्हें चौंका दिया । वे अभी उठ कर बैठ भी नहीं पाई थीं कि उनके सामने अश्वारोहियों का एक मुण्ड आ गया । भयानक भालों की नोक सीधे किये हुए स्वास्थ्य के तरुण तेज से उद्दीप्त जाट-युवकों का वह वीर दल था । स्त्रियां को देखते ही उनके सरदार ने कहा-मां तुम लोगों को कहाँ जाओगी ?

अब फीरोजा और इरावती सामने खड़ी हो गई। सरदार ने घोड़े पर से उतरते हुए पूछा-फीरोजा यह तुम हो बहन !

हां भाई वलराज ! मैं हूँ और यह है इरावती | पूरी बात जैसे न सुनते हुए बलराज ने कहा-फीरोजा अहमद से युद्ध होगा। इस जंगल को पार कर लेने पर तुर्क सेना जाटों का नाश कर देगी इसलिए यहीं उन्हें रोकना होगा । तुम लोग इस समय कहां जाओगी? जहां कहो बलराज । अहमद की छाया से तो मुझे भी बचना है।- फीरोजा ने अधीर होकर कहा ।

डरो मत फीरोजा यह हिन्दोस्तान है और यह हम हिंंदुओं का