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दासी


शयन कक्ष की सेवा का भार आज उसी पर था । वह अहमद के.आगमन की प्रतीक्षा करते करते सो गई थी। अहमद इन दिनों गजनी से मिने हुए समाचार के कारण अधिक व्यस्त था। सुल्तान के रोष का समाचार उसे मिल चुका था। वह फीरोजा से छिपा कर अपने अतरंग साथियों से जिन पर उहें विश्वास था निस्तध रात्रि म मंत्रणा किया करते । पजाब का स्वतन शासक बनने की अभिलाषा उसके मन मे जग गई थी फीरोजा ने उसे मना किया था कि एक साधारण तुर्क दासी के विचार राजकीय कामो मे कितने मूय के हैं इसे वह अपनी महत्वकांक्षा की दृष्टि से परखता था । पीरोजा कुछ तो रूठी थी और कुछ उसकी तबीयत भी अच्छी न थी । वह बाद कमरे में जाकर सो रही। अनेक दासियों के रहते भी आज इरावती को ही वहां ठहरने के लिए उसने कह दिया था। अहमट सीढियों से चढ कर दालान के पास आया । उसने देखा एक वे नाविमण्डित सुप्त सौदर्य! वह और भी समीप आया । गुम्बद के गल च द्रमा की किरणें ठीक इरावती के मुख पर पड़ रही थीं। अहमद ने वारुणी विलसित नेनों से देखा उस रूप माधुरी को जिसम स्वाभाविकता थी बनावट नहीं । तरावट थी प्रमाद की गर्मी नहीं । एक बार सशक दृष्टि से उसने चारों ओर देखा फिर इरावती का हाथ पकड़ कर हिलाया । वह चौंक उठी। उसने देखा सामने अहमद | इरावती खड़ी हो कर अपने वस्त्र सँभालने लगी। अहमद ने सकोच भरी दिठाई से कहा-

तुम यहाँ क्यों सो रही हो इरा ? थक गई थी। कहिए क्या ले आऊँ ?

थोड़ी शीराजी-कहते हुए वह पलंग पर जा कर बैठ गया और इरावती का स्फटिक पात्र में शीराजी उँडेलना देखने लगा। इरा ने जब पात्र भर कर अहमद को दिया तो अहमद ने सतृष्ण नेत्रों से उसकी ओर देख कर पूछा-फीरोजा कहाँ है ।