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आँँधी


मैं तुम्हारी बहुत सी बातें नहीं समझ सकी लेकिन मैं इतना तो कहूँगी कि दुखों ने तुम्हारे जीवन की कोमलता छीन ली है ।

फीरोजा मैं तुम से बहस नहीं करना चाहती। तुम ने मेरा प्राण बचाया है सही कित हृदय नहीं बचा सकती। उसे अपनी खोज खबर आप ही लेनी पड़ेगी। तुम चाहे जो मुझे कह लो । मैं तो समझती हूँ कि मनुष्य दूसरों की दृष्टि में कभी पूर्ण नहीं हो सकता! पर उसे अपनी आंखों से तो नहीं गिरना चाहिए।

फीरोजा ने संदेह से पीछे की ओर देखा । बलराज वृक्ष की आड़ से निकल आया । उसने कहा-फीरोजा मैं जब गजनी के किनारे मरना चाहता था तो क्या भला कर रहा था । अच्छा जाता हूँ। इरावती सोच रही थी अब भी कुछ बोलूं-

फीरोजा सोच रही थी दोनों को मरने से बचा कर क्या सचमुच मैंने कोई बुरा काम किया। बलराज की ओर किसी ने न देखा । वह चला गया ।

रावी के किनारे एक सुन्दर महल में अहमद नया रंगीन पंजाब के सेनानी का आवास है । उस महल के चारों ओर वृक्षों की दूर तक फैली हुई हरियाली है जिसमें शिविरा की श्रेणी में तुर्क सैनिकों का निवास है।

वसंत की चांदनी रात अपनी मतवाली उज्ज्वलता में महल के मीनारों और गुम्बदों तथा वृक्षों की छाया में लड़खरा रही है अब जैसे सोना चाहती हो । चन्द्रमा पश्चिम में धीरे-धीरे झुक रहा था। रावी की ओर एक संगमरमर की दालान में खाली सेज बिछी थी। ज़री के पर्दे ऊपर की ओर बँध थे। दालान की सीढ़ी पर बैठी हुई इरावती रावी का प्रवाह देखते देखते सोने लगी थी-उस महल की सजावट जैसे गुलाबी पत्थर की अचल प्रतिमा हो।