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आँँधी
 

आँधी - भर म किसी पर दया करने की आवश्यकता नहीं । लूटो काटो मारो जानो नियाल्तगीन !

नियाल्तगीन ने हँस कर कहा-पागल तो नहीं हो। इन थोड़े से आदमियों से भला क्या हो सकता है । मैं तो एक बहाने से इधर पाया हूँ। फीरोजा का बनारसी जरी के कपड़ों का

क्या फीरोजा भी तुम्हारे साथ है ?

चलो पड़ाव पर सब आप ही मालूम हो जायेगा !- कहकर नियाल्तगीन ने सकेत किया । बलराज क मन म न जाने कैसी प्रसन्नता उमड़ी।वह एक तुर्की घोड़े पर सवार हो गया।

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उमड़ी। वह एक तुर्की घोड़े पर सवार हो गया। दोना ओर जवाहरात जरी के कपड़ा बतन तथा सुगन्धित द्रव्यों की सजी हुई दूकानों से देश विदेश के व्यापारियों की भीड़ और बीच बीच मे एक घोड़े के रथों से बनारस की पथर से बनी हुई चौड़ी गलिया अपने ढंग की निराखी दिखती थीं। प्राचीरों से घिरा हुआ नगर का प्रधान भाग त्रिलोचन से लेकर राजघाट तक विस्तृत था। तोरणों पर गागेय देव के सैनिकों का जमाव था । कन्नौज के प्रतिहार सम्राट् स काशी छीन ली गई थी। त्रिपुरी उस पर शासन करती थी। ध्यान से देखने पर यह तो प्रकट हो जाता था कि नागरिको म अव्यवस्था थी। फिर भी ऊपरी काम-काज क्रय विक्रय यात्रियों का आवागमन चल रहा था।

फीरोजा कमख्वाब देख रही थी और नियाल्तगीन मणि मुक्ताओं की देरी से अपने लिए अच्छे अच्छे नग चुन रहा था। पास ही दोनों दूकानें थीं। बलराज बीच में खड़ा था। अयमनस्क फीरोजा ने कई थान, छाट लिये थे । उसने कहा बुलराज ! देखो तो इहे तुम कैसा समझते हो। हैं न अच्छे । उधर से निया तगीन ने पूछा कपड़े देख चुकी हो तो इधर श्राश्री । इहें भी देख न लो। फीरोजा उधर