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आँँधी


बताना यही तो मेरा काम था जिससे आज मेरी इतनी प्रतिष्ठा है । दूर रह कर मैं सब कुछ कर सकता था पर हिंदुस्तान कहीं मुझे जाना पड़ा। उसकी गोद में फिर रहना पड़ा तो मैं क्या करूंगा! फीरोजाबाद मैं वहाँ जाकर पागल हो जाऊंगा । मैं चिर निर्वासित विस्मृत अपराधी । इरावती मेरी बहन । आह मैं उसे क्या मुंह दिखलाऊँगा। वह कितने कष्टों में जीती होगी ! और मर गई हो तो फीरोजा । अहमद से कहना मेरी मित्रता के नाते मुझे इस दुख से बचा ले।

मैं जाऊँगी और इरावती को खोज निकालूंगी -राजा साहय । आपके हृदय में इतनी टीस है आज तक मैं न जानती थी। मुझे यही मालूम था कि अनेक अ य तुर्क सरदारों के समान आप भी रंग रलियों में समय बिता रहे हैं किन्तु बर्फ से ढकी हुई चोटियों के नीचे भी पालामुखी होती है।

तो जालो फीरोजा ! मुझे बचाने के लिए | उस भयानक आग से जिस से मेरा हृदय जल उठता है मेरी रक्षा करो। कहते हुए राजा तिलक उसी जगह बैठ गये । पीरोजा खड़ी थी। धीरे-धीरे राजा के मुख पर एक स्निग्धता चली। यह अंधकार हो चला । गजनी की लहरों पर शीतल पवन उन झाड़ियों में भरने लगा था। सामने ही राजा साहब का महल था। उसका शुभ्र गुम्बद उस अंधकार में अभी अपनी उज्ज्वलता से सिर ऊँचा किये था। तिलक ने कहा-फीरोजा जाने के पहले अपना वह गाना सुनाती जाओ। फीरोजा गाने लगी। उसके गीत की ध्वनि थी--मैं जलती हुई दीप शीखा हूँ और तुम हृदय रञ्जन प्रर्याप्त हो । जब तक देखती नहीं जला करती हूँ और तुम्हें जब देख लेती हूँ तभी मेरे अस्तित्व का अंत हो जाता है मेरे प्रियतम [ संध्या की अँधेरी झाड़ियों में गीत की गुजार घूमने लगी। xx