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आँधी
 


बारह आने का एक देशी अद्धा और दो भाने की चाय दो आने की पकौड़ी नहीं-नहीं बालू मटर अच्छा न सही। चारों आने का मांस ही ले लगा पर यह छोकरा ! इसका गढा जो भरना होगा यह कितना खायगा और क्या खायगा । श्रोह ! आज तक तो कभी मैंने दूसरों के खाने का सोच विचार किया ही नीं। तो क्या ले चलूँ ? पहल एक श्रद्धा ही ले ले। इतना सोचते सोचते उसकी आखों पर बिजली के प्रकाश की झलक पड़ी। उसने अपने को मिठाई की दूकान पर खड़ा पाया । वह शराब का श्रद्धा लेना भूल कर मिठाई पूरी खरीदने लगा। नमकीन लेना भी न भूला । पूरा एक रुपये का सामान लेकर वह दूकान से हटा । जद पहुँचने के लिए एक तरह से दौड़ने लगा । अपनी कोठरी म पहुँच कर उसने दोनों की पांत बालक के सामने सजा दी । उनकी सुगध से बालक के गले म एक तरावट पहुची । वह मुस्कराने लगा।

शराबी ने मिट्टी की गगरी से पानी उड़ेलते हुए कहा- नटखट कहीं का हसता है सोंधी बास नाक म पहुँची न ! ले खूब ठूस कर खा ले और फिर रोया की पीटा।

दोनों ने बहुत दिन पर मिलनेवाले दो मित्रों की तरह साथ बठ कर भरपेट खाया । सीली जगह में सोते हुए बालक ने शराबी का पुराना बड़ा कोट ओढ़ लिया था । जब उसे नींद था गई तो शराबी भी कम्बल तान कर बड़बड़ाने लगा-सोचा था आज सात दिन पर भर पेट पीकर सोऊँगा लेकिन यह छोटा-सा रोना पाजी न जाने कहा से आ धमका !

एक चितापूर्ण आलोक म आज पहले पहल शराबी ने श्राख खोल कर कोठरी म बिखरी हुई दारिद्रय की विभूति को देखा और देखा उस घुटनों से जुडी लगाये हुए निरीह बालक को उसने तिलमिलाकर मन ही मन प्रश्न किया-किस ने ऐसे सुकुमार फूलों को कष्ट देने के लिए निर्दयता की दृष्टि की ? आह री नियति ! तब इसको लेकर मुझे घर