मैंने?-अच्छा सुनिये -सवेरे कुहरा पड़ता था मेरे धुआँसे कम्बल
सा वह भी सूर्य के चारों ओर लिया था। हम दोनों मुंह छिपाये पड़े थे।
ठाकुर साहब ने हंस कर कहा-अछा तो इस मुंह छिपाने का कोई कारण?
सात दिन से एक बूंद भी गले न उतरी थी। भला मैं कैसे मुंह दिखा सकता था। और जब बारह बजे धूप निकली तो फिर लाचारी थी । उठा हाथ मुंह धोने में जो दुख हुआ सरकार वह क्या कहने की बात है ! पास में पैसे बचे थे । चना चबाने से दांत भाग रहे थे। कटी कटी लग रही थी । पराठेवाले के यहा पहुंचा धीरे धीरे खाता रहा और अपने को सकता भी रहा । फिर गोमती किनारे चला गया !धूमते घूमते अंधेरा हो गया बंदे पड़ने लगी तब कहीं भाग के और आप के पास आ गया।
अच्छा जो उस दिन तुमने गड़रियेवाली कानी सुनाई थी जिसमें आसफुद्दौला ने उसकी लड़की का आंचल भुने हुए भुग के दानों के बदले मोतियों से भर दिया था! वह क्या सच है।
सच ! अरे वह गरीब लड़की भूख से उसे चबा कर थू थू करने लगी। रोने लगी। ऐसी निर्दयी दिल्लगी बड़े लोग कर ही बैठते हैं ।सुना है श्री रामचद्र ने भी हनुमानजी से ऐसी ही
ठाकुर साहब उठाकर हसने लगे। पेट पकड़ कर हँसते हंसते लोट गये । सांस बटोरत हुए सम्हल कर बोले-और बड़प्पन कहते किसे हैं ? कंगाल तो कंगाल । गधी लड़की । भला उसने कभी मोती देखे ये चबाने लगी होगी । मैं सच कहता हूँ आज तक तुम ने जितनी कहानियां सुनाई सब में बड़ी टीस थी । साहलादों के दुखड़े रंग महल की आभागिनी बेगमों के निष्फल प्रेम करुण कथा और पीड़ा"से भरी हुई कहानियाँ ही तुम्हें आदी हैं पर ऐसी हँसानेवाली कहानी और सुनाश्री तो मैं अपने सामने ही बढ़िया शराब पिला सकता हूँ।