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आँँधी

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                    आँँधी

वाहन से चलने के लिए कहा। हम दोनों साथ साथ पैदल ही चले । पाठशाला के समीप प्रज्ञासारथि अपनी रहस्य पूर्ण मुस्कराहट के साथ अगवानी करने के लिए खड़े थे। xxx दो दिनों में हम लोग अच्छी तरह वहा रहने लगे। घर का कोना-कोना आवश्यक चीजों से भर गया । प्रहासारथि इसमें बराबर हम लोगों के साथी हो रहे थे और सब से अधिक आश्चर्य मुझे मालती को देख कर हुआ। वह मानो इस जीवन की सम्पूर्ण गृहस्थी यहा सजा कर रहेगी । मालती एक स्वस्थ युवती थी कि तु दूर से देखने में अपनी छोटी सी आकृति के कारण व बालिका सी लगती थी। उसकी तीनों संतानें पड़ी सुंदर थी । मिना छ बरस का रखन चार का और कमलो दो की थी। कमलो सचमुच एक गुड़िया थी कल्लू का उस से इतना धना परिचय हो गया कि दोनों को एक दूसरे बिना चैन नहीं । मैं सोचता था कि प्राणी क्या स्नेहमय ही उत्पन्न होता है। अज्ञात प्रदेशों से आकर वह संसार में जम लेता है। फिर अपने लिए कितने स्नेहमय सम्बध बना लेता है कि तु मैं सदैव इन बुरी बातों से भागता ही रहा । इसे मैं अपना सौभाग्य कहूँ या दुर्भाग्य ? इन्हीं कई दिनों में रामेश्वर के प्रति मेर हृदय म इतना स्नेह उमड़ा कि मैं उसे एक क्षण छोड़ने के लिए प्रस्तुत न था । अब हम लोग साथ बैठ कर भोजन करते। साथ ही टहलने निकलते । बाता का तो श्रत ही न था । कल्लू तीनों लड़कों को बहलाये रहता। दुलार खाने-पीने का प्रबन्ध कर लेता । रामेश्वर से मेरी बात होती और मालती चुपचाप सुना करती। कभी कभी बीच में कोई अच्छी सी मीठी बात बोल भी देती।

और प्रज्ञासारथि को तो मानो एक पाठशाला ही मिल गई थी। वे गार्हस्थ्य जीवन का चुपचाप अच्छा सा अध्ययन कर रहे थे। x