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आँँधी

सयम की ज्योति चमक रही थी मैं प्रतिवा न कर सका और यह कहते हुए उठ खड़ा हुआ कि-अच्छा जैसे आप कहते हैं जैसा ही होगा!

मैं धीरे धीरे यगले की ओर लौट रहा था। रारते म अचानक देखता हूँ कि दुलारे दौड़ा हुया चला आ रहा है। मैंने पूछा-क्या है रे?

उसने कहा-पाबूजी घोड़ा गाड़ी पर बहुत से आदमी आये हैं।वे लोग आपको पूछ रहे हैं।

_मैंने समझ लिया कि रामेश्वर आ गया।दुलारे से कहा कि-तू दौड़ जा मैं यहीं खड़ा हूँ!उन लोगों को सामान सहित यहीं लिया आ।दुलारे तो बँगले की ओर भागा कितु मैं उसी जगह अविचल भाव से खड़ा रहा मन मे विचारों की आँधी उठने लगी।रामेश्वर तो आ गया और वे ईरानी भी यहीं हैं।ओह मैंने कैसी मूर्खता की।तो भी मेरे मन को जैसे ढान्स हा कि रामेश्वर मरे बगले मनी ठहरता है।इस बौद्ध पाठशाला तक लैला क्या आने लगी?जैसे लैला को वहा श्राने म कोई दैवी बाधा हो।फिर मेरा सिर चकराने लगा।मैंने कल्पना की आखों से देखा कि लेला अबाधगति से चलने वाली एक निझरिणी है।पश्चिम की सर्राटे से भरी हुई वायुतरंग माला है।उसको रोकने किसम सामर्थ्य है और फिर अकेले रामश्वर ही तो नहीं उसकी स्त्री भी उसके साथ है।अपनी मूर्खतापूर्ण करनी से मेराही दम घुटने लगा|मैं खड़ा-खड़ा झील की ओर देख रहा था।उस म छोटी छोटी लहरिया उठ रही थीं जिनम सूर्य की किरणें प्रतिबिम्बित होकर आँखों को चौंधिया देती थीं। मैंने आखें ब द कर ली।अब मैं कुछ नहीं सोचता था गाड़ी की घरघराहट ने मुझे सजग किया।मैंने देखा कि रामेश्वर गाड़ी का पला खोलकर वहीं सड़क में उतर रहा है।

मैं उससे गले मिल शीघ्रता से कहने लगा-गाड़ी पर बैठ जाओ ।मैं भी चलता हूँ।यहीं पास ही तो चलना है।उसने गाड़ी