यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२०
आँँधी

क्योंकि मेरे रहते यहाँ आपका प्रवध आपकी समझ में आ जायगा।रह गई मेरी असुविधा की बात सो तो केवल आपकी कल्पना है।मैं आपके मित्रों को यहां देख कर प्रसन्न ही होगा। जगह की कमी भी नहीं।

मैं अच्छा कह कर उनसे छुट्टी लेने के लिए उठ खड़ा हुआ किंतु प्रज्ञासारथि ने मुझे फिर से बैठाते हुए कहां देखिए श्रीनाथजी यह पाठशाला का भवन पूर्णतः आपके अधिकार में रहेगा।मितुओं के रहने के लिए तो संघाराम का भाग अलग है ही और उसमें जो कमर अभी अधूर हैं उन्हें शीघ्र ही पूरा कराकर तब मैं जाऊँगा और अपने संघ से मैं इसकी पक्की लिखा पढ़ी कर रहा हूँ कि आप पाठशाला के आजीवन अवैतनिक प्रधानाध्यक्ष रहेंगे और उसमें किसी को हस्तक्षेप करने का अधिकार न होगा।

मैं उस युवक बौद्ध मिशनरी की युक्तिपूण व्यवहारिकता देख करमन ही मन चकित हो रहा था।एक क्षण भर के लिए सिंहाली कीव्यवहार कुशल बुद्धि से मैं भीतर ही भीतर अब उठा।मेरी इच्छा हुई कि मैं स्पष्ट अस्वीकार कर दूं किन्तु न जाने क्या मैं वैसा न कर सका।मैंने कहा-तो आपको मुझमें इतना विश्वास है कि मैं आजीवन आपकी पाठशाला चलाता रहूँगा।

प्रज्ञासारथि ने कहा-शक्ति की परीक्षा सरों ही पर होती है यदि मुझे आपकी शक्ति का अनुभव हो तो कुछ आश्चर्य की बात नहीं।और आप तो जानते ही हैं कि धार्मिक मनुष्य विश्वासी होता है।सूक्ष्म रूप से जो कल्याण-ज्योति मानवता में अंतर्निहित है मैं तो उसमें अधिक से अधिक श्रद्धा करता हूँ।विपथगामी होने पर वही संकेत कर के मनुष्य का अनुशासन करती है यदि उसकी पशुता ही प्रबलन हो गई हो तो।

मैंने प्रशासारथि की आखों से आँख मिलाते हुए देखा उसमें तीन