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आँँधी


विचार करते हुए जीवन की किसी कठिनाई से टकराते रहने से भी सिर म पीड़ा हो सकती है।तो भी मैं हकी सी तन्द्रा केवल तबियत बनाने के लिए ले ही लेता।

शरद काल की उजली धूप ताल के नीले जल पर फैल रही थी।आखों म चकाचौंधी लग रही थी।मैं कमरे म पड़ा अँगड़ाई ले रहाथा।दुलारे ने आकर कहा-ईरानी नहीं नहीं बलूची आये हैं।-मैंने पूछा-कैसे ईरानी और बलूची?

वही जो मगा फीरोजा चारयारी वेचते हैं सिर म रूमाल बधि हुए।

मैं उठ खड़ा हुया दालान म आकर देखता हूँ तो एक बीस बरसके युवक के साथ लैला?गले म चमड़े का बेग पीठ पर चोटी छींटका रूमाल।एक निराला आकर्षक चित्र! लैला ने हसकर पूछा-बाबूचारयारी लोगे?

चारयारी?

हाँ बाबू!चारयारी!इसके रहने से इसके पास सोना अशर्फी रहेगा। थैली कभी खाली न होगी और बाबू! इससे चोरी का माल बहुत जल्द पकड़ा जाता है।

साथ ही युवक ने कहा-ले लो बाबू।असली चारयारी सोना का चारयारी!एक बाबू के लिए लाया था।वह मिला नहीं।

मैं अब तक उन दोनों की सुरमीली आखों को देख रहा था।सुरमेका घेरा गोरे गोरे मह पर आख की विस्तृत सत्ता का स्वतत्रसाक्षी था।पतली लंबी गर्दन पर खिलौने सा मह टपाटप बोल रहा था।मैंने कहा-मुझे तो चारयारी नहीं चाहिए।

किन्तु वहा सुनता कौन है दोनों सीढी पर बैठ गये थे और लेला अपना वेग खोल रही थी।कई पो लियां निकली सहसा लैला के मुह