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आँँधी



पन प लेने पर जैसे एक कुतूहल मेरे सामने नाचने लगा । रामेश्वर के परिवार का स्नेह उनके मधुर झगड़े मान मनौवल-समझौता और अभाव में भी सन्तोष कितना सु र! मैं कल्पना करने लगा। रामेश्वर एक सफल कदम्ब है जिसके ऊपर मालती की लता अपनी सैकड़ों उलझनों से अानन्द की छाया और आलिंगन का स्नेह सुरभि ढाल रही है।

रामेश्वर का ब्याह मैंने देखा था । रामेश्वर के हाथ के ऊपर मालती की पीली हथेली जिसके जर जलधारा पड़ रही थी । सचमुच यह सम्बध कितना शीतल हुा । उस समय मैं हस रहा था बालिका मालती ओर किशोर रामेश्वर ! हिदू समाज का यह परिहास-यह भीपण मनोविनोद ! तो भो मैंने देखा कहीं भूचाल नहीं हुआ-कहीं बालामुखी नहीं फूटी। बहिया ने कोई गाँव बहाया नहीं रामेश्वर और मालती अपने सुख की फसल हर साल कारते हैं। मैंने जो सोचा-अभी अभी जो विचार मेरे मन में आया वह न लिखूगा।मेरी क्षुद्रता जलन के रूप में प्रकट होगी । कि तु मैं सच कहता हूँ मुझे रामेश्वर से जलन नहीं तो भी मेरे उस विचार का मिथ्या अर्थ लोग लगाही लगे । आज कल मनोविज्ञान का युग है न । प्रत्येक मनो वृत्तियों के लिए हृदय को कबूतर का दरबा बना डाला है। इनके लिए सफे। नीला सुर्खा का श्रणी विभाग कर लिया गया है। उतनी प्रकार की मनोवृत्तियों को गिनकर वर्गीकरण कर लेने का साहस भी होने लगा है।

तो भी मैंने उस बात को सोच ही लिया। मेरे साधारण जीवन म एक लहर उठी । प्रसनता की स्निग्ध लहर ! पारिवारिक सुखों से लिपटा हुआ प्रणय कचह देखगा मेरे दायित्व विहीन जीवन का वह मनो विनोद होगा । मैं रामेश्वर को पत्र लिखने लगा- भाई रामेश्वर।

तुम्हारे पत्र ने मुझ पर प्रसन्नता की वर्षा की है । मेरे शन्य जीवन