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आँँधी

बुद्धता लड़की का हाथ पकड़ कर मौलसिरी की ओर चला । देवनिवाम सन्न था । अमरनाथ ने अपनी साइकिल के उज्ज्वल आलोक में देखा नीरा एक गोरी-सी सुदरी पतली दुबली करण की छाया थी। दोना मिन चुप थे । अमरनाथ ने ही कहा-अब लौटोगे कि यहीं गड़ गये।

तुमने कुछ सुना अमरगाथ! वह कहता था--भगवान् यदि कोई हों-कितना भयानक अविश्वास! देवनिवास ने सास लेकर कहा ।

दरिद्रता और लगातार दुखों से मनुष्य अविश्वास करने लगता है निवास ! यह कोई नई बात नहीं है-अमरनाथ ने चलने की उत्सुकता दिखाते हुए कहा।

किन्तु देवनिषास तो जैसे श्रामविस्मृत था । उसने कहा -सुख और सम्पत्ति म क्या ईश्वर का विश्वास अधिक होने लगता है। क्या मनुष्य ईश्वर को पहचान लेता है ? उसकी व्यापक सत्ता को मलिन वेष मे देखकर दुरदुराता नहीं-ठुकराता नहीं अमरनाथ ! अबकी बार आलोचक के विशेषाक में तुमने लौटे हुए प्रवासी कुलियों के सम्बध मे एक लेख लिखा था न! वह सब कसे लिखा था ?

अखबारों से आँकड़े देख कर ! मुझे ठीक ठीक स्मरण है । कर किस द्वीप से कौन-कौन स्टीमर किस तारीख म चले! सतलज पडित और एलिफेंटा नाम के स्टीमरों पर कितने कितने कुली थे मुझे ठीक ठीक मालूम था और

और ये सब अब कहाँ हैं।

सुना है इसी कलकत्ते के पास कहीं मटियाबुर्ज है वहीं अभागो का निवास है ! अवध के नवाब का विलास या प्रायश्चित्त भवन भी तो मटियाबुर्ज ही रहा । मैंने उस लेख में भी एक यंग इस पर बड़े मार्के का दिया है। चलो खड़े खड़े बाते करने की जगह नहीं। तुमने तो कहा था कि आज जनाकीर्ण कलकत्ते से दूर तुमको एक अच्छी जगह दिखाऊँगा । यही ।