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आँँधी

इसकी आवश्यकता नहीं--समाज से डरो मत । अयाचारी समाजा पाप कह कर कानों पर हाथ रखकर चिल्लाता है वह पाप का शब्द दूसरों को सुनाई पड़ता है पर वह स्वयं नहीं सुनता । आओ चलो हम उसे दिखा दें कि यह भ्रान्त है। मैं चार आने का परिश्रम प्रतिदिन करती हूँ। तुम भी सिल्वर के गहनें माँज कर कुछ कमा सकते हो। थोड़े से परिश्रम से हम लोग एक अच्छी गृहस्थी चला लेंगे । चलो तो।

सुंदरी ने दृढता से कमल का हाथ पकड़ किया।

बालक ने कहा- चलो न बाबूजी।

कमल ने देखा-चादनी निखर आई है। बादल हट गये हैं। आपत्य स्नेह हृदय में समुद्र सा उमड़े उठा। उसने बालक के हाथ में रुपया रख कर उसे गोद में उठा लिया।

सम्पन्न अवस्था की विलास वासना अभाव के थपेड़े-से पुण्य में परिणत हो गई । कमल पूर्वकथा विस्मय होकर क्षण भर में स्वस्थ हो गया । मन हल्का हो गया । बालक उसकी गोद में था। सुंदरी पास मे वह विजया दशमी का मेला देखने चला।

विजया के आशीर्वाद के समान चांदनी मुस्करा रही थी।