पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/९५

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अनुकूल बनाना तथा इन पर प्रभाव डालना राजा, महाराजाओं के लिये यदि सहज नहीं है तो कठिन भी नहीं है। परंतु अपनी प्रजा के अतिरिक्त अपने उत्तम शासन तथा प्रबंध द्वारा दूसरे मनुष्यों के चित्त पर उत्तम प्रभाव डाल अपनी ओर श्रद्धा रखने को बाध्य करना सहज काम नहीं है। परंतु बाई के सुप्रबंध का प्रभाव और लोगों पर कितना पड़ता था, यह एक छोटे से लेख से सहज प्रतीत होता है। मालकम साहब कहते हैं। कि---"अहिल्याबाई बहुत प्रसन्नचित्त थीं और यों ही कभी अप्रसन्न होती थीं । परंतु जब कभी पाप या उद्दंडता के कारण उनकी अप्रसन्नता की अग्नि भड़कती थी उस समय औरों की क्या कथा, स्वयं उनके निज सेवकों का भी साहस उनके समीप पहुँचने का नहीं होता था। उन सेवकों का धैर्य छूट जाता था और उनका कलेजा थर्राने लगता था । बरामत दादा नामक एक सेवक ने, जो महेश्वर में कई वर्षों से व्यवस्थापक था और जिस पर बाई अपना पुराना सेवक समझ बहुत प्रेम करती और मानती थीं, मुझे विश्वास दिला कर कहा कि जब कभी बाई क्रोधाग्नि से संतप्त होती थीं उस समय बड़े बड़े शूर वीरों के मन में भी भय उत्पन्न हो जाता था । परंतु ऐसा समय क्वचित् ही उपस्थित होता था ।"

बाई ने अपने राजदूत पूना, हैदराबाद, श्रीरंगपट्टन, नागपुर और कलकत्ता आदि स्थानों में नियत करके परस्पर की सहानुभूति और मेल मिलाप बनाए रखने की उत्तम व्यवस्था की थी। इन स्थानों में यदि स्वयं अपनी राजनीति के कारण किसी प्रकार का वाद विवाद उपस्थित होता था तो