है कि सुख दुःख उपजाने के सब साधन ईश्वर ने मनुष्य के ही अधीन रखे हैं।
भारतवर्ष की जंगली जातियों में से भील जाति के लोग चोरी और लूट मार आदि कार्यों में प्रख्यात हैं । आजकल के ब्रिटिश गवर्मेंट ऐसे शांतिमय राज्य में भी अनेक स्थानों में भीलों और कंजरों का उपद्रव वर्तमान है । जब ऐसे निरुपद्रव काल में भी पथिकों को इन लोगों की लूट मार से भयभीत होना पड़ता है तो अहिल्याबाई के शासनकाल में प्रजा को जितना कुछ दुःख तथा कष्ट होता होगा, उसका सहज ही में अनुमान किया जा सकता है । उस समय कई ऐसे धनलोलुप और नीतिरहित राजा थे जो भीलों के द्वारा धन उपार्जन करने में अपने को लज्जित और कलंकित नहीं समझते थे । बाई के राज्य में तथा दूसरे राज्यों की सीमा पर ये लोग दिन रात लूट मार मचा कर पथिकों और गाँव में रहनेवालों को नाना प्रकार के कष्ट पहुँचाया करते और उनका माल-असबाब धन-दौलत छीन लिया करते थे । इस कारण भीलों का भय उन दिनों में इतना प्रबल हो गया था कि मनुष्य को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना अत्यंत दुःखदायी तथा भय का कारण होता था । उन्होंने अनेक स्थानों पर आने जानेवाले, पथिकों और लदे हुए बैल, घोड़ों आदि पर एक प्रकार का कर नियत कर दिया था जो "भीलकौड़ी" नाम से प्रख्यात था । इन नाना प्रकार के कष्टों का वृत्तांत जब बाई को विदित हुआ तब बाई ने पहले तो उन लोगों के मुखियों को अपनी कोमल प्रकृति के अनुसार बहुत कुछ समझाया