कि अधिक धन एकत्र करने से सर्वदा अपने को सुख और लाभ होगा, यह बात निश्चित नहीं है । एक विद्वान् का कथन है कि धनहीन मनुष्य धनी बनने की इच्छा करता है; और जैसे जैसे वह धनी होता जाता है, वैसे वैसे वह धन संग्रह करने की अधिक अधिक लालसा करता जाता है। जिस प्रकार मद्यपान करने से उसके पीने की रुचि बढ़ती ही जाती है, वैसे ही धनप्राप्ति के साथ साथ अधिक धन संग्रह करने की इच्छा भी बढ़ती जाती है । धन का सच्चा उपयोग क्या है, इस बात को न विचार कर धन संग्रह करने की बलवती इच्छा से उसका संग्रह करते जाना मानो धनतृष्णा का अधिक दृढ़ व्यसन संग्रह करना है ।
एक समय तुकोजीराव होलकर अपनी सेना के साथ इंदौर के समीप ठहरे हुए थे । वहाँ उन्होंने सुना कि देवीचंद नामक एक साहूकार जिसके कोई संतान न थी, अपनी एक मात्र स्त्री को छोड़ स्वर्ग को सिधार गया है । उन्होने प्रचलित राजनियमानुसार देवीचंद की संपूर्ण संपत्ति ले लेनी चाही । तुकोजी का इस प्रकार का अभिप्राय सुनकर देवीचंद की विधवा ने अहिल्याबाई के समीप पहुँच कर उनसे अपनी सारी विपत्ति रो सुनाई । इस विधवा की विकलता और दीनता से बाई का कोमल हृदय ऐसा द्रवीभूत हुआ कि उन्होंने उस विधवा को सम्मानसूचक वस्त्रादि देकर विदा किया और तुकोजी को लिख भेजा कि इस प्रकार की निर्दयता और कठोरता को मेरे राज्य में स्थान न मिलना चाहिए । इस आज्ञा को पाकर तुकोजी ने अपना
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