पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/८०

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सिंहासन पर वही भाग्यशाली स्थापित किया जाता है जिस का संबंध राजघराने से पूर्ण रूप से होता हो अथवा जिसका दत्तकविधान किया जाकर उसको गोद लिया गया हो । परंतु तुकोजीराव का दत्तक लिया जाना नहीं पाया जाता है, इस कारण यह पूर्ण रूप से मानने में भी कुछ शंका न होगी कि तुकोजीराव मल्हारराव होलकर के निकटवर्ती संबंधी ही थे । "चीफ्स एंड लीडिंग फेमिलीज इन सेंट्रल इंडिया" नामक पुस्तक में मध्य भारत के संपूर्ण राजा महाराजा तथा उनके सरदार और प्रमुख कार्यकर्ताओं का वर्णन दिया हुआ है । इस पुस्तक में दिए होलकर घराने के वंदना वंशवृक्ष के निरीक्षण से यह पूर्ण रूप से सिद्ध होता है कि तुकोजीराव सूबेदार मल्हारराव होलकर के पिता के बंधु थे ।

जो कुछ हो, हमको इस विषय में उलझना नहीं है । परंतु हम भी सेनापति तुकोजीराव को तुकोजीराव होलकर ही लिखेंगे; क्योंकि मल्हारराव होलकर के पुत्र तुकोजीराव को अहिल्याबाई ने अपनी निजी विश्वसनीय सेना का सेनापति इस कारण से नियत किया था कि मल्हारराव के साथ इन्होंने कई लड़ाईयों में अपने निज बाहुबल तथा रणचातुरी से दुश्मनों को नीचा दिखाया था । और यही मुख्य कारण था कि मल्हारराव इन पर अधिक प्रेम और विश्वास रखते थे, और तुकोजीराव के विश्वासपात्र बने थे, इसी प्रकार वे बाई के भी पूर्ण विश्वास भाजन बन गए थे, और सेनापति के अतिरिक्त बाई ने इनको दूसरे काम भी सौंप दिए थे । बाई से तुकोजीराव वय में बड़े थे, तथापि बाई को सर्वदा मातेश्वरी कहकर संबोधन