किले पर अपने दोनों सेवकों के सहित पहुँचा तब दोनों सेवकों ने वहाँ के रक्षक को पेशवा सरकार को दिया हुआ आज्ञापत्र दिखला दिया और कह सुनाया कि पेशवा सरकार के अविश्वासपात्र दीवान गंगाधरराव आपके अधीन हैं; आप उन पर पूर्ण रूप से देख भाल रखें। इन बातों के सुनते ही गंगाधरराव ने अपने सेवकों पर कड़ी दृष्टी डाली। परंतु उन्होंने स्पष्ट रूप से सब वृत्तांत कह सुनाया कि हम को पेशवा सरकार की यही आज्ञा थी कि किसी प्रकार आप को यहाँ तक पहुँचा दें। आज कई महीने से हम आपकी गुप्त रीति से देख भाल करते आए हैं, हमने आप को आज अपना सच्चा परिचय दिया है, आपके भाग्य में जो कुछ बदा होगा वह अवश्य होगा। इतना कह दोनों गुप्तचर वहाँ से चले आए। परंतु किलेदार एक सज्जन मनुष्य था, इस कारण गंगाधर राव को वहाँ पर अधिक दुःख न भोगना पड़ा। केवल इतनी देख भाल अवश्य थी कि वे कहीं बाहर न जाने पावें और न कोई उनके पास मिलन को ही आने पावें। परंतु अपनी दुर्दशा की अवस्था को देख और अपने दुष्ट कार्यों को बारंबार स्मरण कर गंगाधर राव सर्वदा दुःखी ही रहा करते थे। अंत में, जब बाजीराव पेशवा स्वर्गवासी हुए, उस समय सिवाय राघोबा दादा के उनके कुल में कोई भी पुरुष अधिकारी नहीं था। इस कारण पेशवा घराने के उत्तराधिकारी दादा साहब ही हुए; और जब दादा साहब को पूर्ण अधिकार प्राप्त हो गया तब उन्होंने ही गंगाधर राव को उस किले के बंदीगृह से मुक्त कर दिया और
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