पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/७४

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इनके मन में किसी प्रकार का दुष्ट भाव बाई की तरफ से नहीं है । तुकोजी ने दादा साहब से पुनः कहला भेजा कि यदि आप यथार्थ में बाई साहब से मिलने को ही चले आए हैं तो इतनी फौज की क्या आवश्यकता थी ? इन शब्दों को सुन दादा साहब निरुत्तर हो गए, परंतु तुरंत पालकी पर सवार हो और दस पॉच सेवकों के साथ तुकोजीराव के शिविर में स्वयं चले आए । यह देख तुकोजी भी आगे बढ़ दादा साहब को बड़े सत्कार के साथ अपने कटक में लिवा लाए और उसी दिन दादा साहब ने अपनी संपूर्ण सेना को सज्जैन में छोड़ कुछ सेवकों के साथ अहिल्याबाई से मिलने के हितार्थं तुकोजी के साथ इंदौर के लिये प्रस्थान किया । गुप्तचरों ने बाई साहब को यहाँ के संपूर्ण वृत्तांत से सूचित कर दिया । इस समाचार के सुनते ही अहिल्याबाई दादा साहब तथा तुकोजी के इंदौर पहुँचने के पूर्व ही वहाँ पहुँच गई ।

तुकोजी और दादा साहब जब इंदौर पहुंचे तब बाई ने बड़ी आवभगत और सत्कार के साथ दादा साहब को अपने निज महल में ठहराने की तुकोजी राव के आज्ञा दी और उनकी पहुनाई में किसी भी प्रकार की त्रुटि न होने दी । दादा साहब लगभग एक मास इंदौर में रहे थे । परंतु अहिल्याबाई ने उनको अपने से भाषण करने का अवसर केवल चार, पाँच दो बार दिया । और जय जय भाषण का अवसर प्राप्त हुआ तब तब सेव्य सेवक भाव से भोपण हुआ । परंतु बाई का दादा साहब पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि वे स्वयं उनका आदर करने लगे । इंदौर से प्रयाण करने के पूर्व दादा साहब ने तुकोजी