पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/७०

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जिस समय ये सब समाचार बाई के गुप्तचरों ने आकर उन पर प्रगट किए तब बाई ने अपने सब सरदारों को और फौजी अफसरों को अपने महल में निमंत्रित कर के एक गुप्त सभा की और उनको दुष्टों की दुष्टता का संपूर्ण हाल सुनाकर राघोबा दादा के विरुद्ध युद्ध करने पर सब उपस्थित मनुष्यों से सम्मति ली । परंतु ऐसा कौन था जो अपनी न्यायशीला और धर्मपरायणा माता के विरुद्ध अपनी सम्मति देता ? सब ने एक स्वर से यही कहा कि दुष्टों को उनकी दुष्टता का बदला अवश्य देना उचित है, और फौजी अफसरों ने प्रेम के वशीभूत ही तुरंत अहिल्यबाई से कहा कि होलकर सरकार का नमक हमारे रोम रोम में भरा हुआ है । जब तक हम में से एक भी सिपाही जीवित रहेगा तब तक हम रणक्षेत्र से कभी मुंह नहीं मोड़ेंगे, आप विश्वास रखे कि हमारे जीवित रहते हुए अपके राज्य में से कोई तिनका नहीं ले सकता । इस प्रकार के वाक्य अपने वीरों के मुख से सुनकर बाई को बहुत ही सतोप हुआ और उन्होने उनको पोशाक देकर सत्कारपूर्वक विदा किया । दूसरे दिन बाई ने अपने विश्वासपात्र सेनानायक और अधिकारियों को पुन: एकत्रित करके सेंधिया, भोंसला, पँवार, और गायकवाड़ महाराजा से मत चाहने के हेतु पत्र लिखे जाने का प्रस्ताव किया । बाई के इस प्रकार की दूरदर्शिता के विचारों को सुन सब प्रस्ताव से सहमत होगए, और प्रत्येक को इस आशय का पत्र लिखा गया कि इस होलकर राज्य की स्थापना मेरे श्वशुर मल्हारराव ने अपने निज बाहुवल से और अपने शरीर