हम पहले कह आए हैं कि राघोबा दादा ने भी जब धन और राज्य के लोभ से गंगाधरराव की हाँ में हाँ मिलाई और होलकर राज्य के अनेक अधिकारियों ने अहिल्याबाई को युद्ध रूपी भय दिखाकर, स्वयं इनके विरुद्ध आचरण करने का निश्चय किया । बाई को जब ये समाचार उनके गुप्तचरों द्वारा प्रगट होगए तब उन्होंने एक पत्र राघोबा दादा को लिख भेजा । जब बाई का भेजा हुआ पत्र उनको मिला तब उसे पढ़कर वे बहुत ही लाल पीले हुए और अपने कर्मचारियों को पत्र का आशय सुनाते हुए बिना विचारे अभिमान के साथ अपनी सेना को तैयार होने का उन्होंने हुक्म दिया । दूसरे दिन जब फौजी अफसर ने आकर दादा साहब को सेना के सैयार होने की सूचना दी और कहा कब प्रयाण किया जायगा यह पूछा तब दादा साहब ने कहा कि मालवा में मल्हारराव होलकर की पुत्रवधू जो विधवा है उसको इतना अभिमान हो गया है कि हमारे भेजे हुए गंगाधरराव की सलाह से वे दत्तक पुत्र लेने पर राजी नहीं होती इसलिये उन्हें उचित दृष्ट देने की लालसा से मालवा को चलना है । परंतु दादा साहब ने अपना असल भेद कि राज्य को ही हम हड़पना चाहते हैं किसी पर भी प्रगट नहीं होने दिया, और सेना को मालवा की और रवाना कर दिया ।
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