पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/६३

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अपनी आश्रिता इस कोमल मंजरी की रक्षा करना, परछाँई के समान इसे सर्वदा अपने निकट ही रखना, विधाता की सृष्टि की सुंदरता का नमूना जान इससे प्रेम करना, अभी यह गृहस्थाश्रम के मर्म को नहीं जानती है । इसको सदा इस प्रकार की शिक्षा देते रहना, जिससे भविष्य में यह रमणी समाज में पतिप्राण कामनियों की श्रीधरी कहलावे, और सब लोग इस को आदर की दृष्टि से देखें । मेरी इस शिक्षा को मंत्रवत स्मरण रखना । यदि इस उपदेश का पालन करोगे, तो तुमको आजन्म सुख प्राप्त होता रहेगा ।

स्त्री को सुखी रखना तथा सुमार्ग पर चलाना पति ही के अधीन है । स्वामी ही के गुणों को सीख कर स्त्री गुणशालिनी होती है, स्त्री जितनी स्वामी के मन के भावों के जानने में चतुर होती है, उतनी और और कार्यों के करने में दक्ष नहीं होती, यदि वह अपने स्वामी के भक्तिभाव को एक बार समझ ले, तो उससे गुणवती दूसरी क्या हो सकती है ? घोड़ा अपने सवार के आसन को पहिचान उसे सवारी में कच्चा जान पीठ से गिराने की चेष्टा करता है । यही दशा स्त्रियों की भी है और जब घोड़ा जानता है जि सवार सवारी मे पक्का है तब वह किसी प्रकार की दुष्टता नहीं करता, वरन चुपचाप सवार के मन की गति के अनुकूल चाल चलता है, इसी प्रकार स्त्रियाँ भी अपने स्वामी के रंगढंग को देखकर उसके प्रसन्न रखने का प्रयत्न करती हैं । देखो, इसके साथ कभी नीरस बरताव न करना । जिस बात से इस सरला अबला के हृदय में किसी प्रकार का कष्ट हो ऐसा बर्ताव भूल कर भी न