मात्मा की न्यायशीलता पर दृढ़ विश्वास कर, इन सब कष्टों का सामना करने को वे दृढ़चित्त से तत्काल तत्पर हो गईं,- सच्चे ईश्वर प्रेम और सच्ची भक्ति के ये ही लक्षण हैं ।
अहिल्याबाई दोषी थीं अथवा निर्दोष, इस विषय को अधिक न ले हम मालकम् साहब की इसी विषय पर पुनः कही हुई कुछ बातें यहाँ लिखे देते हैं, जिनके अवलोकन मात्र से यह स्पष्ट प्रतीत हो जायगा, कि देवी अहिल्याबाई के स्फटिकरूपी स्वच्छ चरित्र में रात्रिरूपी श्याम कालिमा दुष्टों ने अपने निज स्वार्थ को सिद्ध करने के लिये लगाने की पूर्ण रूप से चेष्टा की थी । मालकम साहब लिखते हैं कि-"मालीराव की मृत्यु का वृत्तांत कई युरोपियन गृहस्थों को भी विदित हुआ और उनको भी यह निश्चय हो गया था कि यथार्थ में अहिल्याबाई ही मालीराव की मृत्यु की स्वयं कारण हुई हैं । परंतु इस बातों से और अहिल्याबाई के नाम (चरित्र) से घनिष्ट संबंध होने के कारण स्वयं मैंने अपना यह कर्तव्य समझा कि जहाँ तक हो सके इस विषय की स्वयं में पूर्ण खोज करूँँ । अंत में मेरी खोज का परिणाम यह निकला कि अहिल्याबाई पूर्ण रीति से निर्दोषी सिद्ध हुईं । यह ऐसा अपराध था कि कैसा ही कारण क्यों न हो, परंतु उसको कोई भी क्षमा नहीं कर सकता था । हाँ, यथार्थ में मालीराव पागल होने के कारण, जिन जिन दुष्ट कर्मों को करना था संभव है कि उन उन कर्मों से बाई को अत्यंत घृणा होती होगी । और यथार्थ में बाई को पूर्ण रूप से विश्वास हो चुका था कि मालीराव की अवस्था सुधरने की नहीं है, तब उनका ऐसा विचार