उत्तर सुना दिया था, उसे दिन में वह अपने मन ही मन यह विचार किया करता था कि ऐसी कौन मी युक्ति बन पड़े, जिससे राज्य का कार्य अपने हाथ में आवे ! उसने समय समय पर नाना प्रकार के षड्यंत्र रचे । परंतु बाई की बुद्धिमत्ता और दूरदर्शिता के कारण उसके रचे हुए दुष्ट उपायों का कुछ भी परिणाम नहीं हुआ। अहिल्याबाई इसकी प्रत्येक चालाकी को बड़ी सुगमता से समझ लेतीं, और उसे नष्ट कर देती थीं । जब गंगाधरराव की किसी भी दुष्टता से युक्ति सिद्ध न हुई तब अंत को उसने राघोबादादा को, जो पेशवा सरकार के चचा थे, इस संपूर्ण राज्य तथा धन का लोभ दिलाया, और उन्हें अपने पक्ष में सम्मिलित करने के हेतु एक पत्र इस आशय का लिखा कि यदि आप स्वयं इस समय सेना लेकर चढ़ आवे तो सरलतापूर्वक यह संपूर्ण राज्य, जो कि आपके पुरुखाओं का दिया हुआ है, और अब सिवाय एक स्त्री के कोई उस संपत्ति का अधिकारी नहीं है, आपके हस्तगत हो जायगा । पत्र को पाते ही लालच के वशीभूत होकर राघोबा दादा भी बिना पूर्ण विचार किए, गंगाधरराव के पक्ष पर होगए । और जब बाई को उनके भेजे हुए गुप्तचरों द्वारा यह प्रतीत होगया कि राज्य के लोभ से गंगाघर के पक्ष पर सम्मिलित होने की राघोबा दादा ने इच्छा की है, तब बाई ने स्वयं राघोबा दादा से कहला भेजा कि यह संपूर्ण राज्य प्रथम मेरे ससुर का स्थापित किया हुआ है पश्चात् मेरे पति का व मेरे पुत्र का था, परंतु दुर्भाग्य से वे सब इसको छोड़ स्वर्गवासी हो गए हैं और अब यह संपूर्ण राज्य मेरा
पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/५७
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( ४८ )