का भार न चल सकेगा । आपके आगे नाना प्रकार की बाधाएँ आ उपस्थित होंगी और आपके ईश्वरपूजन, भजन आदि शुभ कार्यों में अनेक प्रकार के विघ्न होंगे । इस कारण आप राज्याधिकारी होने के लिये किसी स्वरूपवान छोटे बचे को दत्तक ले लेवे और मैं स्वयं उत्तम प्रकार से संपूर्ण राज्य का प्रबंध कर बड़ी योग्यता से कार्य को चलाऊँगी । आप अपने हाथ खर्च के लिये एक दो परगने लेकर निश्चिंत ही सुखपूर्वक ईश्वर भजन करें।
अहिल्याबाई ने गंगाधरराव की छिपी हुई मनोवृत्ति को समझ उत्तर दिया कि मैं एक राजा की तो स्त्री हूँ, और दूसरे की माता, अब तीसरे किसका राजसिंहासन पर बैठाल उसका तिलक करू ? इसलिये स्वयं मैं ही अपने कुलदेवता को राजसिंहासन पर बैठा, संपूर्ण राज्य का कार्य करूँगी । इस उत्तर को सुनकर गंगाधरराव की आशा के मूल पर निराशा की कुल्हाड़ी का आघात पड़ा । परंतु तिस पर भी उसने अपने मन में विचार किया कि अपने प्रयत्न करने में कमी न करनी चाहिए । जैसे-
तुष्यंति भोजने विप्रा मयूरा घन गर्जिते ।
साधवः परसंपत्तौ खलः परविपत्तिषु ।।
चाणक्य ।
अर्थात्, भोजन से ब्राह्मण, और मेघ के गर्जने पर मयूर, दूसरे को संपत्ति प्राप्त होने पर साधु लोग, और दूसरे की विपत्ति पर दुजन संतुष्ट होते हैं । इसी प्रकार जिस दिन से अहिल्यावाई ने गंगाधरराव को अपनी बुद्धिमानी से रूखा