पाँचवाँ अध्याय ।
दीवान गंगाधरराव और अहिल्याबाई ।
जब मालीराव का भी स्वर्गवास हो गया तब अहिल्याबाई ने स्वय राज्यशासन का कार्य अपने हाथ में ले स्वतः प्रबंध करने का दृढ़ संकल्प किया । परंतु राज्यकार्य में हाथ बटाने के लिये नाम मात्र को कुछ दिनों के लिये पेशवा सरकार के अनुरोध में उन्होंने गंगाधरराव को अपना मंत्री बनाना स्वीकार किया । गंगाधरराव बड़ा स्वार्थी, और कुटिल स्वभाव का मनुष्य था । इस बात की परीक्षा उन्होंने अपने वृद्ध श्वशुर मल्हारराव के जीवनकाल में ही करली थी । परंतु मल्हाराव ऐसे बुद्धिमान व चतुर मनुष्य के जीवित रहते गंगाधरराव को अपनी स्वार्थता सिद्ध करने का हियाव न हुआ । बरन वह उन पर नर्वदा अपना बगुला भक्ति ही दया करता था । परंतु ज्योही मल्हारराव के जीवन का अंत हुआ त्योंही उसने सोचा कि अब अपने लिये यहाँ धन समग्र करने का और राज्य में हस्तक्षेप करने का अच्छा अवसर आ उपस्थित हुआ है । यदि अहिल्याबाई ऐसी बुद्धिमती और नीतिनिपुणा स्त्री ने संपूर्ण राज्यशासन का भार स्वयं अपने हाथों में रखा तो मेरी स्वार्थसिद्धि में पूर्ण बाधा पड़ेगी, और बाई के सम्मुख मेरी कोई भी युक्ति न चलेगी । इस कारण उसने बाई से बड़े विनीत भाव से कहा कि आप एक सुकुमार अवला स्त्री है; आपसे राज्य