पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/५४

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( ४५ )


निरर्थक अपवाद लगाया गया कि उसने प्रेत बनकर मालीराव के प्राण नष्ट किए और अहिल्याबाई को इस बात का पूर्ण विश्वास भी हो गया था। वे दिन रात अपने प्राणप्यारे एकमात्र पुत्र के पलंग के पास बैठकर उस प्रेत से, जिसको कि उन्होंने माना हुआ था कि इसके शरीर में है, वार्तालाप करती थी कि जिससे प्रेत शांत हा जाय। बाई ने प्रेत से यह भी कहा कि यदि तू मेरे बच्चे को छोड़ देगा तो मैं तेरे नाम से एक मंदिर बनवा दूंगी, और तेरे कुटुंब के लोगों के हितार्थ एक जीविका भी स्थापित कर दूंगीं परंतु यह सब व्यर्थ हुआ और बाई को इस प्रकार सुनाई दिया कि-"उसने मुझ निरपराधी के प्राण लिए है इस कारण मैं भी उसको जीवित न रहने दूँगा"। यह प्रख्यात कहानी मालीराव की मृत्यु की है, और इस घटना की बड़ा घनिष्ठ संबंध अहिल्याबाई के जीवन से है! इसी घटना के कारण होलकर घराने की दुरवस्था (बरवादी) के संरक्षणार्थ अहिल्याबाई को आगे आना पड़ा और उस अबला स्त्री को अपने उन सदगुणो का अर्थात् बुद्धिमानी, पानिवृत और काम करने की सहनशीलता का संयोग दिखाना पड़ा, जिसके कारण जब तक वे जीवित रह से अपने राज्य को सुख और समृद्धि देने वाली हुई। मालवा प्रांत के न्यायशील राज्यप्रबंध से और इसकी सुव्यवस्था से उन्होंने अपना नाम चिरकाल के लिये अमर कर दिया था।

_ _______ __