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और थल के प्राणी मात्र अपने अशे में कितना झाड़ बचाव रखते हैं तो पुण्यशीला अहिल्याबाई पर यह दोष आरोपण करना कितनी प्रथम श्रेणी की मूर्खता का लक्षण है । हाँ, यह संभव हो सकता है कि बाई पर इस प्रकार का कलंक मढ़कर दुष्टों ने अपने हित की कोई संधि निकालनी चाही होगी परंतु इस न्यायाधीश परमात्मा के सम्मुख किसका हिसाब है कि अपने भक्त पर कोई कलंक लगा अपनी अर्थ सिद्धि कर ले ? इस अपवाद को सुन स्वयं मालफम साहब ने भी इस विषय की पूर्ण रीति से खोज की थी जिसके पढ़ने से पाठको को स्पष्ट रीति से ज्ञात हो जायगा कि मालीराव की मृत्यु में अहिल्याबाई का कुछ भी हाथ नहीं था। यह केवल दुष्ट और धनलोलुप मनुष्यों की एक चाल थी कि किसी भी प्रकार राज्य के मालिक स्वयं बन बैठे । मालकम साहब ने जो कुछ खोज इस विषय में की थी उसका भावार्थ इस प्रकार से है कि "मालीराव ने एक रफूगर को अत:पुर की किसी दासी से प्रेम करने के शक के कारण मरवा डाला था, जो कि सरासर निरपराधी था, परंतु दु:ख के साथ कहना पड़ता है कि मालीराव ने अपनी उद्ददता के कारण अपनी मृत्यु को चितावनी दे दी ।"
हिंदुस्थान के निवासियों को इस बात का पूरा विश्वास है कि मरी हुई आत्मा समय पाकर अपनी शक्ति से दूसरों के जीवन को भी नष्ट कर देती है । यह बात प्रसिद्ध थी कि रफूगर जादूगर था और उसने मालीराव को प्रथम ही चिता दिया था कि वह उसे जान से न मारे, वरना उसका कठिन बदला अवश्य लेवेगा । उस रफूगर पर यह अद्भुत और