बाई के ऊपर ही पड़ा, क्योंकि मल्हारराव एक तो वृद्ध थे और दूसरे पुत्रशोक के कारण राज्य का कार्य चलाने में उनका मन नही लगता था । वे केवल धन उपार्जन करना ही अपना मुख्य कर्तव्य समझने लगे, परंतु उसका संचय करना और उसकी 'सुव्यवस्था करने का भार अहिल्याबाई की योग्यता और दक्षता पर निर्भर था । राज्य का कोई कर्मचारी भी बिना अहिल्याबाई की आज्ञा के तिनका नहीं हिला सकता था । मल्हारराव तो प्राय अपने कटक के साथ रहा करते थे, परंतु घर में रह कर अहिल्याबाई वार्षिक कर लेती, आयव्यय का लेखा देखतीं और उसे जाँचती थी । फौज का व्यय अथवा जिस किसी व्यय की अवश्यकता होता उतना धन अहिल्याबाई मल्हारराव के पास भेज देती थी । अहिल्याबाई के सिर पर राज्य का भार रहते हुए भी वे अपना अधिक समय दान, धर्म, तीर्थ व्रत आदि में ही व्यतीत करती थी । इतनी सामर्थ्य और प्रभुता होने पर भी क्रोध या अभिमान ने उनके हृदय को स्पर्श तक नहीं किया था । खंडेराव की मृत्यु के पश्चात् मल्हारराव ने अहिल्याबाई के नाम पर संपूर्ण राजकीय कार्य के कागज पत्र कर दिए थे, और पूना दरवार में पेशवा सरकार को भी अहिल्याबाई की चतुरता और उत्तम दक्षता के साथ संपूर्ण राज्य के निर्विघ्नता से कार्यों को संपादन करने की शैली मालूम हो गई थी, जिसको सुन बारंबार उनकी योग्यता की बढाई स्वयं पेशवा सरकार किया करते थे ।
जगतप्रख्यात् पानीपत की लड़ाई लड़ने के पूर्व मरहठों