तो आप अपने ससुर मल्हारराव के आने तक उसको रोक रखती थी और उनसे इस विषय में भले प्रकार परामर्श लेकर उस कार्य को घटाती बढाती थी। इस विषय में सर जान मालफम साहब ने एक जगह इस प्रकार लिखा है कि "पुराने कागज़ों के निरीक्षण से यह बात स्पष्ट रूप से प्रतीत होती है कि जब कभी मल्हारराव अपने राज्य से दूर जाते थे, तो संपूर्ण कार्य का भार अपनी पुत्रवधू अहिल्याबाई पर ही छोड़ जाया करते थे। यथार्थ में अहिल्याबाई ने अपने राज्यप्रणाली के कार्य को भली भांति चलाने की योग्यता ऐसे ही अवसर पाकर प्राप्त की थी।"
अहिल्याबाई को पुराण कथा आदि श्रवण करने की अधिक रुचि थी। वह कभी रामायण, कभी महाभारत की कथाएँ प्रति दिन बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ श्रवण किया करती थीं। सर्वदा पुण्य के कर्मो में श्रद्धा रखकर उनको उत्तम प्रकार से विद्वान् ब्राह्मणों के द्वारा कराती थीं । इनका चित्त सदा भगवद्भक्ति मे प्रसन्न रहा करता था और इसी कारण से इनके विचार शुद्ध रहा करते थे। श्रीयुत् गोस्वामी जी ने कहा है कि --
काम क्रोध मद् लोभ सब, नाथ नरक कर पंथ ।
सब परिहरि रघुवीर पद, भजन कहहीं सद प्रंथ ॥१॥
सगुण उपामक परमहित, निरति नीत दृढ़ नैन ।
ते नर प्राण समान मोहि, जिनके द्विज पद प्रेम ॥२॥
अर्थात्—सद ग्रंथ अर्थात् वेद, शास्त्र आदि ऐसा कहते हैं कि काम, क्रोध, मद और लोभ ये सब नरक के मार्ग हैं।