अपने पूज्य पिता की आज्ञा पालन करने में दृढ़ किया। इन्होंने कुछ दिनों तक पिता की आज्ञा से ऊपरी कार्य की देख भाल में अपना समय व्यतीत किया और इसके अनंतर इनकी रूचि अन्य कार्य करने के लिये दिन प्रति दिन बढ़ी। धीरे धीरे राज्य संबंधी कार्य में भी खंडेराव ने पिता का हाथ बटाना आरंभ कर दिया। इस बात को देख मल्हारराव इनसे अत्यंत प्रसन्न हुए और मन ही मन अपनी पुत्रवधू की सराहना करने लगे। परंतु मल्हारराव की हार्दिक इच्छा यह थी कि खंडेराव भी युद्ध विद्या में मन लगावे तो अपने प्रांत की उन्नति में किसी प्रकार की कमी न होगी। मल्हारराव के इस विचार को अहिल्याबाई ने अपने स्वामी से समय पाकर इस चतुरता और विनय भाव से कहा कि खंडेराव भी सुनकर युद्ध विद्या के सिखने में दृढचित्त हो तत्पर हो गए। उन्होंने उसी दिन से युद्ध विद्या को सिखना आरम्भ कर दिया और थोड़े ही समय के पश्चात् इसमें अच्छी योग्यता प्राप्त कर ली। उन्होने अवसर पाकर अपने पिता के साथ युद्ध में भी जाना अरंभ कर दिया, इससे मल्हारराव को पूर्ण प्रसन्नता अपने पुत्र खंडेराव पर हो गई।
जब मल्हारराव को पूर्ण ज्ञान हो गया कि अहिल्याबाई सपूर्ण गृहकार्यो को उत्तम प्रकार से चलाने लगी हैं तो जब कभी स्वयं आप और खंडेराव बाहर चले जाते, तो राज्य के कार्यों के ऊपरी निरीक्षण का भार भी अहिल्याबाई को ही सौंप जाया करने लगे। इस काम को भी अहिल्याबाई ने भले प्रकार से चलाया। यदि कोई विशेष बात होती