पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/३१

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कारण मल्हारराव होलकर ने भी अपने पुत्र का नाम खंडेराव रखा ।

जब खंडेराव पांच वर्ष के थे तभी से इनका स्वभाव बड़ा चिड़चिड़ा और हठीला था । ये अपने पिता से अधिक भय भीत रहते थे, और जब ये दस वर्ष के हुए तब सिवाय खेल कूद के इनका मन और दूसरे कामों में नहीं लगता था । और जो कुछ इन्हें कहना होता था वह सदा अपनी माता से ही कहा करते थे । मल्हारराव ने इनको विद्याभ्यास कराने के निमित्त नाना प्रकार के यत्न किए परंतु कुछ अधिक लाभ नहीं हुआ । कुछ और समझदार होने पर इनका समय गप्पों में और नाच रंग में ही व्यतीत हुआ करता था । खंडेराव की यह आदत और रुचि को देख मल्हारराव सदा दुखित और चिंतित रहा करते थे । वे बारबार यह विचार किया करते थे कि इसका जीवन इसकी उद्दंडता के कारण नष्ट होता जा रहा है । इसके सुधारने के अनेक यत्न मल्हारराव ने किए परंतु सब व्यर्थ हुए । इनकी उद्दंडता दिन पर दिन बढ़ती ही गई । अंत में दुःखित हो और पछता कर मल्हारराव ने यह निश्चय किया कि इनका व्याह कर दिया जाय, जिससे कदाचित् ये सुधर जाँय । यह सोचकर उनके व्याह के लिये लड़की खोजी जाने लगी ।