दिल्ली से आई हुई फौज से भोपाल में एक बड़ा युद्ध हुआ, जिसमें बड़ी बहादुरी के साथ राणोजी और मल्हारराव ने दुश्मनों पर कोसों तक धावा डालते हुए और अपनी अपनी रणचातुरी का परिचय देते हुए उन्हें पराजित किया।
मल्हारराव ने अपना पूर्ण अधिकार मालवा प्रांत पर सन् १७२८ ईसवी में जमाया था और काम काज का संपूर्ण भार दीवान गंगाधर यशवंत को, जो होलकर का उस समय एक सच्चा और विश्वासपात्र सेवक था, सौंपा था, और ऊपरी फौजी व्यवस्था तथा अन्य कामों की देख भाल का भार अपने जिम्मे रख छोड़ा था।
पूना से मालवा प्रांत में आते समय इनकी स्त्री गौतम बाई और दूसरे लोग भी इनके साथ आए थे। ऐसा प्रतीत होता है कि इस समय इनकी माता का स्वर्गवास हो गया था, क्योकि मालवा प्रांत में केवल गौतमाबाई के ही आने का पता लगता है। गौतमाबाई स्वभाव से बड़ी दयालु और सुशीला तथा पतिभक्त स्त्री थीं । मालवा में निवास करने पर जब कभी मल्हारराव युद्ध के लिये बाहर जाते थे तो इनकी भी अनुमति लेते थे । मल्हारराव ने मालवा में एक ठाकुर की पुत्री से जो कि इनकी वीरता का हाल सुनकर इन पर मोहित हो चुकी थी विवाह किया था । इसका नाम हरकाबाई था। गौतमाबाई और हरकाबाई में अत्यंत प्रेम रहा करता था । सन् १७२५ ईसवी में ईश्वर की असीम कृपा से गौतमाबाई को विजयादशमी के दिवस पुत्ररत्न का जन्म हुआ। खंडोबा महाराष्ट्र (मरहठे) लोगों के कुलदेवता होने के