पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/२५

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की सूचना हुई, जिसको सुनकर बहुत से सिपाही जो अपने परिवार सहित निवास करते थे, दुखित हुए, परंतु मल्हारराव को यह सुन अत्यंत हर्ष हुआ । इन्होंने इस छोटे से युद्ध में अपनी बहादुरी और साहस का परिचय इस उत्तमता के साथ दिया कि इनके फ़ौजी अफसर इनको देख चकित हो गए और कहने लगे कि यह लड़ाई को खेल समझता है, तथा बारूद और गोलों को फूलों के समान मानता है । इस युद्ध के समाप्त होने के पश्चात इनके बड़े अफसर ने इनपर अत्यंत प्रसन्न हो सन् १७२२ के जून मास में इनका नायक के पद पर नियत कर दिया। उस पद के प्राप्त होने के अनतर इन्होंने दो युद्ध और लड़े थे और उन दोनों में जय प्राप्त की थी । इस समय इनकी शूरता, वीरता और रण-चतुरता के समाचार पेशवा सरकार तक पहुँचे । जब पूना में पेशवा सरकार को विदित हुआ कि अमुक ठिकाने हमारी फौज में एक नवयुवक मरहठा बालक बड़ा ही बहादुर और युद्ध के काम में बहुत चतुर है तो उन्होंने अणकाई दुर्ग के अफमर के पास हुक्म भेजा कि नायक मल्हारराव को पूना दरबार के अधीनस्थ पूना के बेड़े में ही भेज दिया जाये । हुकम पाकर तुरंत ही मल्हारराव पूना रवाना किए गए । यहाँ पहुँच कर मल्हारराव पेशवा सरकार के मुजरा को एक दिन प्रातः काल अपने अफसर के साथ दरबार में आए और जब पेशवा सरकार को मल्हारराव के उपस्थित होने का समाचार निवेदन किया गया तब ये उनके सामने अपने अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होकर गए और इन्होंने पेशवा सरकार का फौजी