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भारतवर्ष में चरित्रनायक अथवा, चरित्रनायिका होने के पात्र कोई हुए ही नहीं हैं, यह बात नहीं है। इस देश में भी अनेक स्त्री पुरुप चरित्रनायक या चरित्रनायिका होने के उपयुक्त पात्र हो चुके हैं, परंतु यदि आज अवलोकन किया जाय तो जो सच्चे मार्ग-दर्शक, धर्मवीर और नीतिज्ञ थे, उनका जीवन वृतांत उपलब्ध ही नहीं होता है, विशेष कर हिंदी साहित्य में तो केवल कहानियां मात्र ही रह गई हैं। आज यदि हमारे पूर्व महानुभायों की जीवनियां पाश्चिमात्य अथवा अनेक दूसरे विद्वानों को न प्राप्त होती तो इतना भी हमको देखना दुर्लभ था।

आज कल तो सब मनुष्य प्रति दिन यही चाहते हैं कि हम को सुख प्राप्त हो, शांति के गहरे समुद्र में हम गोता लगावें, हम को बल, आरोग्य, कीर्ति, सम्पत्ति यथेच्छ रूप से प्राप्त हो, परंतु बल, सुख, शांति, सम्पत्ति मिलने के असली मार्ग से अपरिचित रह कर वे विपरीत ही पथ को स्वीकार करके उस पर आरूढ हो जाते हैं, जिसका परिणाम यह होता है कि वे सुरज के बदले उस दुःख और अशांति के गहरे कूप में जा फँसते हैं, जहां से सरलतापूर्वक निकलना असभव नहीं तो, दुसाध्य अवश्य हो जाता है।

अनेक महानुभावों ने, साधु महात्माओं के तथा विद्वानों के प्रदर्शित मार्ग पर चल कर जिस सुख का, जिस अलौकिक शादि का, जिस परमानंद को दिव्य अनुभव किया है, उन सब के उपदेशों का यही ताप्तर्य है कि धर्म बल सब बलों से