पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१७६

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बह्मो धीर तरु मूल कूल साहस को टूट्यो ।
बहु बाजन के संग, बाँध दृढ़ता को फुट्यो ।।
घोर नाद चहुँ ओर, शोक ही शौक लखान्यो ।
गई भूमि भरि जयै शोक नभ जाय समान्यो ।। ६ ।।

पहुँचे सबै मसाने भूमि पै अब नियाराई ।
लहर थमी जब पढी़ शोक की तहँ गहराई ।।
वाजन को गभीर नाद हूँ शात भयो है ।।
हाय 'हाय' को शब्द क्षणिक विश्राम लयो है ।। ७ ।।

पाठकवृंद सचेत थाम ले अपनी छाती ।
शाक लहर गभीर सिंधु की अब आती ।।
विधवा पुत्री लखौ बिदा माता से लेती ।
भारताय आदर्श प्रेम की शिक्षा देबी ।। ८ ।।

वाको अतिम मिलन, कहो कैसे दरसाऊँ ।
शोक सिंधु की थाह, कहॉ कर सो समझाऊँ ।।
है यह नहिं सो विदा सुता जब पति घर जाती ।
अक भरत ही जवै मातु की भरती छाती ।।९।।

है यह ऐसी विदा फेरि मिलनों नहि ह्वैहै ।
काले सिधु में चूडि फेरि को ऊपर ऐहै ।।
परम कठिन यह दृश्य, पहुँच बानी की नाहीं ।
जो तुम सो बनि परै करो अनुभव मन माहीं ।१०।।

है सचेत अब सुता चिता की ओर निहारी ।
हिए अनि करतव्य तजे रोवति गहँतारी ।।