आज दिन भी मालवे के निवासी बाई के नाम मात्र के श्रवण से ही आनंदित हो जाते हैं ।
(७) अमेरिका निवासिनी एक महिला मिस जान वेली ने मुक्ताबाई के सती होने का हाल काव्य में इस प्रकार उत्तम रीति से और सुंदरता से लिया है कि उसके पढ़ने से वे संपूर्ण दृश्य आँखों के सामने देख पड़ने लगते हैं जो उस समय हुए होंगे । उसको हमने भी अपने सुहृदय पाठकों के लिये यहाँ छाया रूप अनुवाद में लिखा है ।
जिस समय अहिल्याबाई ने अपनी पुत्री मुक्ताबाई को उस के प्राणपति के साथ सती होने से रोका था उस समय मुक्ताबाई ने अपने भग्न हृदय से करुणा भरे हुए शब्दों में कहा--ऐ मेरी माता ! तुम मुझे इस प्रकार से दुःखी मत कर, मेरा सर्वस्व छिन गया, अब मेरे लिये यह शरीर त्यागना ही श्रेयस्कर हैं । क्या मेरे कुलीन स्वामी अकेले चिता में भस्म कर दिए जायेंगे, और मैं जो कि उनकी एकमात्र प्रेमपात्री और अर्धांगिनी थी, और जिसको वे अपने भवन में देख सर्वदा प्रसन्न चित्त रहते थे और लाड़चाव से मेरा पालन पोषण करते थे, उनकी भाग्यहीना पत्नी हो कर उनके अंतिम प्रेम को क्या आज इस प्रकार नीचता से कुचलूंगी; हे ब्रह्म परमेश्वर सर्वव्यापी तुम मुझ अबला को इस प्रकार की अल्पबुद्धि न दो । ओ मेरे सत और प्रेम मुझे अपने प्राणपति के साथ जाने से विचलित न करो ।
तब अहिल्याबाई ने कहा--प्यारी मुक्ता ! जिस समय मैंने निराश्रित और उदास हो तेरे कुलीन पिता की मृत्यु के पश्चात