ऐसी विलक्षण रुचि थी कि लावनियों को सुनकर और इसके तमाशे को देखकर लोग इसकी अधिक सराहना और आदर किया करते थे। इसने अहिल्याबाई के न्यायशीला और धर्म पर आरूढ़ रहने की कीर्ति सुन यह विचार किया कि एक समय चलकर अपने खेल तमाशे के बहाने से बाई के दर्शन कर आवें और यदि बाई तमाशे को देख प्रसन्न हो गई तो बहुत कुछ द्रव्य भी हाथ आवेगा। कुछ समय व्यतीत होने के उपरांत अनंतफंदी अपने साथियों को ले महेश्वर के लिये चल पड़ा। परंतु जब यह मंडली सतपुड़ा पहाड़ के पास से होकर निकल रही थी कि अचानक इनको भीलों ने आ घेरा और इनके कपड़े-लत्ते तथा तमाशे की वस्तुएँ छीन ली। इतना ही नहीं परंतु फंदी को बाँधकर वे ले जाने लगे। जब फंदी और इनके साथी लोग घिरे हुएँ एक स्थान पर भीलों के नायक के पास लाकर उपस्थित किए गए तब तुरंत फंदी ने एक लावनी छेड़ दी जिसके सुनने से नायक बहुत प्रसन्न हुआ और इनको मुक्त कर उसने लावनी कहने का आग्रह किया। फंदी ने कई लावनियों के कहने के अतिरिक्त अपना खेल भी नायक को दिखाया जिससे नायक ने इनपर अत्यंत प्रसन्न हो फंदी को एक पोशाक और कुछ द्रव्य देकर उसका बड़ा सत्कार किया। जब नायक को यह विदित हुआ कि ये लोग अहिल्याबाई के ही दरबार में जा रहे हैं तब इन सब से उसने विनयपूर्वक अपने अपराध की क्षमा माँगी और इनके साथ में चार पाँच भील देकर महेश्वर तक पहुँचा देने को कहा।
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