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लगे कि तुम इतनी अधीर क्यों हो रही हो? हम उसको अभी खोज लेते हैं । तब बहिन ने भोजराज से कहा, भैय्या देखो, देखो, वह काला सर्प जो कि उस झाड़ी में जा रहा है पहले मल्हारी के मस्तक पर अपने फन को फैलाए हुए बैठा था । यह कह कर फिर मंद मंद स्वर से रोने लगी । शेष भगवान जो कि अभी तक मल्हारराव की रक्षा किए हुए थे मानों मल्हारराव को माता की धरोहर उनके भाई भोजराज के समक्ष सौंप भाषण की आहटरूपी पावती ले निश्चिंत हो अपने स्थान को चले गए । भोजराज तुरंत झाड़ियों को कुचलते हुए मल्हारराव के समक्ष पहुँच उनको पुकार कर उनके मुखचंद्र की ओर निहारने लगे कि एकाएक उन्होंने अपनी दोनों पलकें खोल कर मामा की ओर देखा और वे उठ बैठे । परंतु बाल्य स्वभाव के कारण वे कुछ सकुचाए, भोजराज पुलकित मन हो वहीं बैठ गए और अपनी बहिन को वहीं पर आने का संबोधन फर पुन: उनके संकोच से भरे हुए मधुर हास्य को निहारने लगे ।
मल्हारराव की माता जिसके मन की गति थोड़े ही समय पहले श्रावण मास के मेघ की गति के तुल्य, अथवा रात्रि के मेघों की घटा में पूर्ण चंद्र के प्रकाश की गति के समान हो रही थी, एकाएक अपने पुत्र को सामने बैठा देख थोड़ी देर पहले के कल्पनारूपी दुःख को भूल प्रत्यक्ष पुत्रदर्शन के प्रेम और सुख में तल्लीन हो गई। उनके अंतःकरण में प्रात: काल के उदयाचल पर्वत पर सूर्य के निकलने के प्रकाश के तुल्य प्रकाश होने लगा और किरणों के तेज से मुख पर के