तेरहवाँ अध्याय ।
अवतार-समाप्ति ।
आप करे उपकार आति, प्रति उपकार न चाह ।
हियरो कोमले संत सम, सुहृदय सोइ नरनाह ॥
बड़े बड़े वैभवाले, बड़ी आयुवाले, अगाध महिमावाले मृत्यु मार्ग से चले गये हैं। बहुत से पराक्रमी, बहुत से युद्ध करनेवाले, संग्राम-शूर भी कालकवलित हो चुके हैं। अनेक प्रकार की चल रखनेवाले, बहुत काल देखनेवाले, और बड़े बड़े प्रतापशाली राजा लोग भी मृत्यु के ग्रास बने चुके हैं। बहुतों के पालक, बुद्धि के चालक युक्तिवान नाश को प्राप्त हो चुके हैं। विद्या के सागर, बल के पर्वत और धने के कुवेर इसी पथ से जा चुके हैं। बड़े बड़े तेजवाले, बड़े पुरुषार्थ वाले, और बहुत विस्तार के साथ काम करनेवाले भी इसी मार्ग का पदानुकरण कर गये हैं। अनेक तपस्वियों के समूह, अनेक संन्यासी और तत्वविवेकी परलोकवासी बन चुके हैं। अस्तु, इस प्रकार सभी चले गए हैं और एक दिन सब जायँगे। तो फिर अपना परमार्थ सिद्ध करने के अतिरिक्त और दूसरा मार्ग ही नहीं है। केवल :—
श्रवण कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् ॥
अर्चनं वंदनं दास्यं सख्यमामृनिवेदनम् ॥ १ ॥