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अधिक सान्त्वना करने पर बड़ी कठिनता से वे नर्मदा में स्नान करने योग्य सचेत हुई थीं। पश्चात् राजभवन में जा बिना अन्न जल के तीन दिन व्यतीत किये थे। इस दुःख से वे इस प्रकार दुःखमय हो गई थीं कि उन्होंने एक शब्द भी मुँह से नहीं निकाला था। और जब वे इस चिंता से निवृत्त हुई तब उन्होंने उन दोनों के स्मरणार्थ एक अत्यंत सुंदर और विशाल छत्री बनवाई थी।"
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