पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१४३

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यशस्वी था । उसको भी मृत्यु ने 'न छोड़ा । दूसरे मरुत् धर्मात्मा थे कि जिनका यश इंद्र से भी बढ़कर था । उनके राज्य में बिना जोते ही भूमि धान्य से परिपूर्ण होती थी । उनको भी कराल काल ने न छोड़ा। फिर देखो कि अंग देश का राजा बृहद्रथ कैसा पुण्यशील और उदार था । एक बार उसने बड़ी धूमधाम से यज्ञ किया था और दक्षिणा में, दश लक्ष श्वेत घोड़े, दश लक्ष कन्याओं को संपूर्ण आभूषण सहित, दश लक्ष हाथी सुवर्ण की साँकलों से शोभित, एक कोटि बैल, सहस्र गौ इत्यादि दिये थे। परंतु उनको भी मृत्यु ने न छोड़ा । राजा शिवि जो संपूर्ण पृथ्वी का राजा था, जिसने यज्ञ में सर्वस्व दान दे दिया था; राजा भगीरथ जो गंगाजी लाये थे और जिन्होंने दश लक्ष कन्याओं को सुवर्ण और धन देकर दान किया था; राजा दिलीप जिन्होंने सरत्न पृथ्वी दान की थी; राजा पृथु जो बड़े प्रजा-शील थे, जिनके समय में पृथ्वी पर धन धान्य पुष्पपत्र स्वयं उत्पन्न होते थे और जिन्होंने यज्ञ में सुवर्ण के २१ पर्वत दान दिये थे; भला जब ऐसे ऐसे राजा जिनकी साक्षी देने वाली पृथ्वी वर्तमान है, कालकवलित हो चुके हैं, तो भी, तुम मेरे इस शरीर के नष्ट न होने देने के लिए क्यों इतना हठ करती हो? यह मोह, यह माया जाल सब वृथा है। माँ ! शरीरधारी अवश्य नाश को प्राप्त होते हैं। संपत्ति में दुःख भरा है, संयोग के साथ ही वियोग है और जो उत्पन्न हुआ है उसका अवश्य नाश है। यह शरीर क्षण क्षण में घटता है। परंतु दृष्टि में नहीं आता। मां, यौवन, धन, ऐश्वर्य पुत्रादि से मोह