पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१३२

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दृढ़ विश्वास से वह अपने दुःख सुख को सामान्य रूप से देखने लगता है।

बाई के सुचरित्र और धार्मिक कार्यों से भारतवासियों के मन में प्रीति का संचार होना साहजिक है, अधिक गौरव की बात नहीं है । परंतु उनके इस कार्य ने पश्चिमी विद्वानों को भी मुग्ध कर लिया था, यह विशेष गौरव की बात है ।

मालकम साहब लिखते हैं कि—"यह चरित्र अत्यंत अलौकिक है । स्त्री होने पर भी बाई को अभिमान लेश मात्र नहीं था । उनको धर्म की विलक्षण धुन थी और इतना होने पर भी परधर्म-सहिष्णुता में वे निपुण थीं । उनका शरीर भोलापन लिये हुए वृद्ध हो गया था; परंतु अपने आश्रितों को, अपनी पुत्रवत् प्रजा को, किस प्रकार सुख हो, उनका वैभव बढ़े, इसके अतिरिक्त उनके मन में अन्य विचार नहीं होता था । बाई ने अनियंत्रित अधिकार का उपयोग पूर्ण दक्षता और विचारपूर्वक किया था । इस कार्य से उनके मन की वृत्ति स्थिर हो चुकी थी और उनके आश्रितजनों ने तथा संपूर्ण प्रजा वर्ग ने जहाँ तक उनसे बना, अपने तन मन से उनकी आज्ञा का पालन किया था ।"

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