देवप्रयाग--यह स्थान गंगोत्री जाते हुए मार्ग में मिलता है । इसके पास से गंगा उत्तर की ओर से गई है और अलकनंदा पूर्व-उत्तर की ओर से आकर उस में मिल गईहै । अलकनंदा के दाहिने टिहरी का राज्य और बाए अंग्रजी राज्य है । देवप्रयाग के समीप अलकनंदा पर लोहे का २०० फुट लंबा और २४.२५ फुट चौड़ा झूलना फुल है । यह स्थान (देवप्रयाग) समुद्र के जल से २२३६ फुट ऊपर टिहरी के राज्य में पहाड़ के बगल में बसा हुआ है । इसी स्थान पर बाई का सदावर्त लगा है और राय बहादुर सेठ सूर्यमल का भी सदावर्त लगा है ।
गंगोत्री--ह्रषीकेश से उत्तर और पहाड़ी मार्ग से लगभग १५६ मील पर गंगोत्री स्थान है । भटवाड़ी से ३७ मील और समुद्र के जल की सतह से लगभग १४००० फुट ऊपर गंगोत्री है ।
यहाँ पर विश्वनाथ, केदारनाथ, भैरव और अन्नपूर्णा के चार मंदिर और पांच छः धर्मशालाएँ बाई की और राय बहादुर सेठ सूर्यमल का सदावर्त है ।
इनके अतिरिक पहाड़ों के ऊपर जगह जगह १०-१५ घर की बस्तियाँ देख पड़ती हैं । यहाँ पर पहले कई चट्टियों पर बाई
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यह मुझ से बार बार कहता था । वर्तमान समय में भी वहाँ पर पत्थर की एक धर्मशाला और पानी का कुंड पृथ्वी के धरातल से पर्वत के ऊपर लगमग ३०० फुट के है, जहाँ पर मनुष्यों का पहुंचना दुर्गम जान पड़ता है । बाई ने ये स्थान केवल यात्रियों को दिए थे